
इन दिनों में ; आते हैं अनगिनित न जाने कितने ख़याल मन में , उठ खड़ा हो जाता हूँ जल्द, उनको मैं निभनें में , किस किस को निभाऊँ किस किस को ना ? माएने फ़ुर्सत के कुछ और हुआ करते थे पहले, अब तो सब बदल ही गए इस ज़माने में ।। ~ अमिताभ

असमान्य होने से आप अपने आप को जीवित नहीं रख सकते ; न ही बुद्धिमान होने से ; जो बदलाव के लिए सम्वेदनशील होते हैं , वो अपने आप को जीवित रख सकते हैं

"थक कर आता था तो सुलाता था घर आज भी हर मुसीबत से बचाता है घरबाहर ख़तरा मंडरा रहा है बचना है हमें एक जुट कैसे हों ये हमें सिखाता है घरबचपन गुजरा जो जैसे बहुत पुरानी बात आज याद बचपन की दिलवाता है घर "

" समझ गया दिल ये भी अब तो समझाने से लड़ी जाएगी ये लड़ाई अब आशियाने सेमिलकर नहीं अलग अलग लड़ना है हमें मैं लड़ता अपने तुम लड़ो अपने ठिकाने सेघर में हो तुम इसे क़ैद न समझो मेरे यार कट जाएंगे दिन ये तेरे मेरे मुस्कुराने से

अनुशासन - अपने साथ ज़बरदस्ती करते रहना , बार बार , उसका अनुभव हमें चाहे कैसा ही क्यूँ ना लगे ; जब तक की वो एक आदत न बन जाए

'शब्द मेरी पहचान बने तो बेहतर है , चेहरे का क्या है, वो तो मेरे साथ ही चला जाएगा ',,,, ।।